चिरन्तन उपस्थिति

 

आपने श्रीअरविन्द के जन्म को विश्व- इतिहास में शाश्वत  बतलाया है ? '' शाश्वत '' का ठीक अर्थ क्या है ?

 

इसे चेतना के चार आरोही स्तरों पर चार भिन्न तरीकों से समझा जा सकता हैं :

 

    १. भौतिक रूप में, जन्म के परिणाम जगत् के लिए शाश्वत महत्व के होंगे ।

 

     २. मानसिक रूप में, यह एक ऐसा जन्म है जिसे विश्व इतिहास शाश्वत काल तक याद रखेगा।

 

     ३. चैत्य रूप से, एक ऐसा जन्म जो धरती पर युग-युग मे हमेशा होता रहता है ।


     ४. आध्यात्मिक रूप से, ' शाश्वत ' का धरती पर जन्म ।

 

१९५७

 

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 पृथ्वी के इतिहास में आरम्भ से ही श्रीअरविन्द ने किसी-न-किसी रूप में, किसी-न-किसी नाम से हमेशा पृथ्वी के महान् रूपान्तरों का संचालन किया हैं ।

 

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    कहा जाता है कि श्रीअरविन्द ने अपने एक पिछले जन्म मे फ़रासीसी क्रान्ति मे सक्रिय भाग लिया था !  क्या यह सच हे?

 

तुम कह सकते हो कि सारे इतिहास में ही श्रीअरविन्द ने सक्रिय भाग लिया था । विशेष रूप से इतिहास की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटनाओं के समय वे उपस्थित थे- और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और प्रमुख भूमिका निभा रहे थे । पर हां, वे हमेशा सामने न होते थे ।

 

२३ जनवरी १९६०

 

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श्रीअरविन्द निरन्तर हमारे साथ हैं और जो लोग उन्हें देखने और सुनने के लिए तैयार हैं उनके आगे अपने- आपको प्रकट करते हैं ।

 

     आशीर्वाद ।

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 श्रीअरविन्द बहुत विशाल और मूर्त रूप में (सूक्ष्म शरीर में) ध्यान के समय सारे अहाते पर आसीन थे ।

 

२८ अगस्त, १९६२

 

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पिछली रात, हम (तुम, में ओर कुछ अन्य लोग) काफी देर तक श्रीअरविन्द के स्थायी निवास-स्थान में एक साथ थे, वह स्थान जिसका अस्तित्व सूक्ष्म भौतिक में हे (जिसे श्रीअरविन्द ने वास्तविक भौतिक जगत् कहा है) ।

 

१ फरवरी १९६३

 

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श्रीअरविन्द सूक्ष्म भौतिक जगत् में हैं, अगर तुम यह जानते हो कि वहां कैसे जाया जाये, तो तुम उनसे नींद में मिल सकते हो ।

 

१३ अगस्त १९६४

 

     (एक साधक ने सोते हुए सूक्ष्म भौतिक जगत् में विराजमान सूक्ष्म भौतिक शरीरधारी श्रीअरविन्द का अन्तर्दर्शन किया उठने इसके बारे मे माताजी को लिखा माताजी का उत्तर:)

 

 श्रीअरविन्द हर एक की आवश्यकता के अनुसार उसे दर्शन देते हैं और सूक्ष्म भौतिक में चीजें यहां के जैसी नियत नहीं हैं ।

 

        तुमने जो देखा है उसके विवरण की अपेक्षा अन्तर्दर्शन से उत्पन्न भावना को ज्यादा महत्त्व दो।

 

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 सारा दिन तड़के से ही श्रीअरविन्द सदा की तरह विद्यमान थे बहुत जीवित- जाग्रत्; कभी-कभी चुप रहना मेरे हो जाता था मैं अपने अन्दर-ही- अन्दर बुदबुदाता रहा आनत होना शायद ठीक नहीं था ठीक था क्या माताजी? लेकिन श्रीअरविन्द इत्रने

 

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     नजदीक और इतने सजीव थे ।

 

 इसके विपरीत, यह बिलकुल ठीक हैं, वे अब जितने सजीव हैं उतने कभी नहीं रहे!

 

५ दिसम्बर, १९६७

 

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श्रीअरविन्द सूक्ष्म भौतिक में निरन्तर रहते हैं और वहां बृहत कार्यरत हैं । मैं प्रायः प्रतिदिन उनसे मिलती हूं । कल रात मैंने उनके साध कई घंटे बिताये ।

 

   अगर तुम सूक्ष्म भौतिक में सचेतन हो जाओ तो तुम निश्चय ही उनसे मिलोगे । यह वही है जिसे श्रीअरविन्द सच्चा भौतिक कहते हैं- इसका चैत्य से कोई सम्बन्ध नहीं ।

 

२१ दिसम्बर, १९६९

 

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श्रीअरविन्द की सहायता चिरन्तन है : हमें उसे ग्रहण करना सीखना चाहिये ।

 

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 श्रीअरविन्द हमेशा हमारे साथ हैं, हमें प्रकाश देते हैं, रास्ता दिखाते हैं ओर हमारी रक्षा करते हैं । हम पूर्णनिष्ठ बनकर ही उनकी कृपा के पात्र बन सकेंगे ।
 

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